डॉ.संजीव मिश्र
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद के फाफामऊ स्थित एक इंटर कालेज की 17
वर्षीय छात्रा एक दिन स्कूल में बेहद परेशान नजर आ रही थी। दरअसल सीआरपीएफ का एक
जवान अचानक रास्ता रोककर उसे परेशान कर रहा था। एक दिन उसने उसे बीस रुपये दिये...
फिर दूसरे दिन पांच सौ रुपये। परेशान छात्रा ने अपनी अध्यापिका को पूरी कहानी
सुनाई तो अध्यापिका ने उसकी काउंसिलिंग की। अगले दिन वह सीआरपीएफ जवान फिर रास्ते
में खड़ा था, तो छात्रा ने मुंह पर पांच सौ रुपये फेंके और उसे पुलिस के हवाले
किया। ऐसा सिर्फ उक्त छात्रा के साथ नहीं हुआ, बल्कि यूपी ही नहीं पूरे देश के लिए
ऐसे किस्से आम हैं। बच्चे सब जानते हैं और वे खुल भी रहे हैं। जिस तरह बच्चा चोरी
की घटनाओं और अफवाहों पर लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं, वे भी इसी अविश्वास का
परिणाम हैं।
बच्चों के साथ हो रही घटनाएं तेजी से चर्चा का विषय हैं। इसमें भी
सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि बच्चे इस ओर जागरूक भी नहीं हैं। यूनिसेफ
द्वारा हाल ही में कराए गए एक सर्वे में बच्चों की जागरूकता को लेकर अनूठे तथ्य
सामने आए हैं। पता चला कि प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले 37 प्रतिशत बच्चे किसी न
किसी तरह की शारीरिक अभद्रता के प्रति जागरूक थे, वहीं अन्य स्कूलों के बच्चों में
यह आंकड़ा 52 प्रतिशत था। प्राइमरी स्कूलों के 34 फीसद बच्चे ही गलत स्पर्श को
समझते थे, जबकि अन्य स्कूली बच्चों में गलत स्पर्श के प्रति जागरूक बच्चों की संख्या
52 प्रतिशत मिली। बच्चों ने बताया कि तमाम बार लोग उन्हें गलत तरीके से स्पर्श
करने के साथ बड़ों को न बताने की नसीहत भी देते हैं। सरकारों ने बच्चों की मदद के
लिए 1090 पर डायल करने सहित कई हेल्पलाइन भी बना रखी हैं किन्तु अधिकांश बच्चों को
उसके बारे में पता ही नहीं था। सिर्फ सात प्रतिशत बच्चे महिला हेल्पलाइन के बारे
में जानते थे। देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। उत्तर
प्रदेश के बाल विकास विभाग की पहल पर स्कूल-स्कूल जाकर चले जागरूकता अभियान में
बचपन की ऐसी तमाम हकीकतें सामने आयीं। बच्चे खुलकर बोल रहे हैं। इस दौरान बच्चों
ने घर से बाहर तक असुरक्षा की कई कहानियां सुनाईं। विभाग की प्रमुख सचिव मोनिका एस
गर्ग के मुताबिक इस दौरान बच्चों से लेकर शिक्षकों तक जागरूकता की मुहिम चली तो
स्थितियां बदली सी नजर आयीं। न सिर्फ बच्चे खुले, बल्कि उनकी जागरूकता का स्तर भी
सुधरा। यूनिसेफ की उसी टीम ने दोबारा सर्वे किया तो आंकड़े बदले। अब बच्चों की
जागरूकता का स्तर कुछ मामलों में 75 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। अब बच्चों को
कुपोषण से बचाने की पहल भी हुई है। इसमें बच्चों तक संवाद के साथ उन्हें पोषणयुक्त
भोजन पहुंचाना सुनिश्चित किया जा रहा है। हाल ही में स्वयं मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ इस दिशा में आगे आए हैं।
दरअसल उत्तर प्रदेश की यह पहल पूरे देश के लिए प्रेरणास्पद भी है और
चुनौती भरी भी। पूरे देश में बच्चे व उनके माता-पिता डरे हुए हैं। जगह-जगह बच्चा
चोरी की अफवाह में मॉब लिचिंग की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। हालात ये हैं कि
पूरे देश में अफवाहों से बचाने की पहल करनी पड़ रही है। पहले से डरे माता-पिता जान
ही नहीं पा रहे हैं कि कब उनके बच्चे सुरक्षित होते हैं और कब अफवाहें उनका पीछा
कर रही होती हैं। तमाम बार बच्चों को लेकर उनकी आशंकाएं सच भी साबित होती हैं। हाल
ही में पुलिस तक जाकर भी शिकायतें दर्ज न होने के कई मामले भी सामने आए हैं। इससे
निपटने के लिए भी सकारात्मक पहल की जरूरत है। सरकारों को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी
होंगी। यह असुरक्षा का भाव ही है कि कहीं बच्चा चोरी के शक में मूक-बधिर महिला की
पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है, तो कहीं भिखारी मार डाले जाते हैं। इसमें सोशल
मीडिया का दुरुपयोग भी जमकर हो रहा है। जिस तरह से डरावने वीडियो वायरल हो रहे
हैं, उससे माता-पिता भी नहीं जान पा रहे हैं कि वे बच्चों को कैसे समझाएं। इन स्थितियों
में माता-पिता के साथ बच्चों के बीच संबल होना भी जरूरी है। हाल ही में महाराष्ट्र
पुलिस की जांच में पता चला कि वहां वायरल हुआ एक वीडियो पाकिस्तान में बच्चा चोरी
के प्रति जागरूकता के लिए बनाए वीडियो को काट-छांट कर वायरल कर दिया गया। ऐसे
शरारती तत्वों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए। इन
सबके बीच बच्चों की आवाज की अनसुनी बहुत महंगी पड़ सकती है। वे वोटर नहीं हैं
किन्तु भविष्य उनके ही हाथ में है। हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे बच्चे हैं...
वे सब जानते हैं!
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